अदा-ए-हैरत-ए-आईना-गर भी रखते हैं हमें न छेड़ कि अब तक नज़र भी रखते हैं न गिर्द-ओ-पेश से इस दर्जा बे-नियाज़ गुज़र जो बे-ख़बर से हैं सब की ख़बर भी रखते हैं कहाँ गया तिरी महफ़िल में ज़ोम-ए-दीद-वराँ ये हौसला तो यहाँ कम-नज़र भी रखते हैं क़फ़स को खोल मगर इतना सोच ले सय्याद बहुत असीर तेरे बाल-ओ-पर भी रखते हैं फ़रिश्ता है तो तक़द्दुस तुझे मुबारक हो हम आदमी हैं तो ऐब-ओ-हुनर भी रखते हैं खुशा-नसीब कि दीवाने हैं तो हम ऐ 'दिल' कमाल-ए-निस्बत-ए-दीवाना-गर भी रखते हैं