अदावत पकड़ते चले जा रहे हैं वो मुझ से झगड़ते चले जा रहे हैं मुसलसल न रह महव-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न यूँ तिरे बाल झड़ते चले जा रहे हैं ज़रा चार पैसे जो आए तो कम-ज़र्फ़ सुना है अकड़ते चले जा रहे हैं बड़ों में ही कोई कमी रह गई थी जो बच्चे बिगड़ते चले जा रहे हैं जो शाना बशाना थे कल हर क़दम पर वो क्यों अब बिछड़ते चले जा रहे हैं सभी एक कुंबे के हैं लोग 'अहमद' जो आपस में लड़ते चले जा रहे ही