वो तस्वीर में आते रहे देर तक हम ग़ज़ल गुनगुनाते रहे देर तक एक ही साथ रौशन हुए थे मगर कुछ दिए झिलमिलाते रहे देर तक जाने कब के चले भी गए वो मगर रास्ते जगमगाते रहे देर तक पढ़ न लें शहर के लोग चेहरे का ग़म इस लिए मुस्कुराते रहे देर तक चंद अहबाब 'ताबाँ' जहाँ मिल गए अपनी अपनी सुनाते रहे देर तक