अँधेरे में बला सी उदासी ही उदासी किसी के तन की ख़ुशबू फिरे उड़ती हवा सी मोहब्बत को ज़बाँ दी ख़मोशी की दुआ सी वही इंसाँ दरिंदा मगर सूरत जुदा सी ये बे-क़ाबू तबीअ'त लगे प्यारी ख़ता सी चढ़ी उमड़ी जवानी नई रुत की घटा सी खुली ख़्वाहिश की कोंपल बहुत कमसिन ज़रा सी