जिन को हर हालत में ख़ुश और शादमाँ पाता हूँ मैं उन के गुलशन में बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ पाता हूँ मैं सुब्ह की मंज़िल का तारों से पता क्या पूछना ज़ुल्मत-ए-शब कारवाँ-दर-कारवाँ पाता हूँ मैं चाँद के उस पार सूरज से उधर तारों से दूर रक़्स करते रोज़-ओ-शब लाखों जहाँ पाता हूँ मैं