अधूरा रह गया मजनूँ से इस्तिफ़ादा मिरा सो फिर से दश्त को जाने का है इरादा मिरा अजीब शाख़ थी संदल की मुझ से कहती थी बजाए सुर्मा लगाया करो बुरादा मिरा ज़रूरतों की किफ़ालत उसी के ज़िम्मे है जिसे ख़याल है मुझ से कहीं ज़ियादा मिरा निगाह-ए-शैख़ तिरी हाज़िरी को चल निकलूँ हवा-ए-तौबा सुखा दे अगर लबादा मिरा तिरे निसार तिरे लुत्फ़-ए-ख़ास के क़ुर्बां कि तेरे हाथ ने रक्खा है दिल कुशादा मिरा