अदू के हाथ से मैं जाम ले कर पी नहीं सकता किसी कम-ज़र्फ़ का एहसान ले कर जी नहीं सकता कभी जी चाहता है नाम ले कर ज़ोर से चीख़ूँ न जाने नाम क्यों ज़ालिम का फिर ले भी नहीं सकता मिरे दिल ने ज़माने में कुछ इतने ज़ख़्म खाए हैं मसीहा भी दिल-ए-सद-चाक को अब सी नहीं सकता मिरी तिश्ना-लबी पर 'नूर' ये भी तंज़-ए-साक़ी है भरे हैं हर तरफ़ जाम-ओ-सुबू और पी नहीं सकता