शिकवा अग़्यार का है मेरे सुनाने के लिए चाहिए रोज़ नई छेड़ सताने के लिए सुर्मा सा जो मुझे आँखों में जगह देते थे आज आए हैं वो मिट्टी में मिलाने के लिए काश दम भर को पलट आए हयात-ए-रफ़्ता मेरी मय्यत पे वो आए हैं जिलाने के लिए कुंज-ए-ज़िंदाँ में इधर हम हैं उधर मौसम-ए-गुल आ गया और भी दीवाना बनाने के लिए सीना-ए-महर में सोज़िश है दिल-ए-माह में दाग़ आफ़त-ए-जाँ है ग़म-ए-इश्क़ ज़माने के लिए 'नूर' जब जानूँ ख़याल उन का जगा ले मुझ को मौत आई है मुझे आज सुलाने के लिए