अदू को मैं ने पूछा कौन ये सरकार बैठे हैं तो साले ने कहा हँस कर हमारे यार बैठे हैं कहीं लैला का या लैला की माँ का सर उतारेंगे जनाब-ए-क़ैस जो बाँधे हुए तलवार बैठे हैं अबे ये घर है तेरा या कोई भटियार-ख़ाना है कहीं दो-चार लेटे हैं कहीं दो चार बैठे हैं गदागद हो रही है वस्ल की शब तेरी ख़ल्वत में पलंग पर एक लेटा है तो नीचे चार बैठे हैं सवाल-ए-बोसा-ए-गेसू पे बरहम हो के फ़रमाया हम इन गुस्ताख़ियों से मुँह पे जूते मार बैठे हैं कहा करते हैं वालिद 'बूम' के जोश-ए-मोहब्बत में नहीं मालूम किस जंगल में बर-ख़ुरदार बैठे हैं