अफ़सोस गुज़र गई जवानी वो लम्हा-ए-कैफ़-ओ-शादमानी क्या आ गई नींद अहल-ए-महफ़िल कहनी थी हमें भी इक कहानी मैं हुस्न-ए-वफ़ा की ज़िंदगी था तुम ने मिरी क़द्र ही न जानी अब तक ऐमन की वादियों से आती है सदा-ए-लन-तरानी 'सीमाब' करो अब अल्लाह अल्लाह ता-चंद ये मातम-ए-जवानी