अफ़सोस है सब हस्ब-ओ-नसब भूल रहे हैं हम लोग बुज़ुर्गों का अदब भूल रहे हैं हम आप की यादों में हैं डूबे हुए हर दम और आप हमें देखो ग़ज़ब भूल रहे हैं जिस रोज़ से देखा है तिरी आँखों के अंदर उस रोज़ से हम बज़्म-ए-तरब भूल रहे हैं मसरूफ़ हैं हम लोग ज़माने की रविश में क्यों आए हैं दुनिया में सबब भूल रहे हैं ग़मगीन हैं तो लब पे 'शजर' नाम है रब का ख़ुशियों में मगर देखिए रब भूल रहे हैं