अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना ख़ाली मुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त लिखता हूँ 'असद' सोज़िश-ए-दिल से सुख़न-ए-गर्म ता रख न सके कोई मिरे हर्फ़ पर अंगुश्त