आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं आ जाएँ रोब-ए-ग़ैर में हम वो बशर नहीं कुछ आप की तरह हमें लोगों का डर नहीं इक तो शब-ए-फ़िराक़ के सदमे हैं जाँ-गुदाज़ अंधेर इस पे ये है कि होती सहर नहीं क्या कहिए इस तरह के तलव्वुन-मिज़ाज को वादे का है ये हाल इधर हाँ उधर नहीं रखते क़दम जो वादी-ए-उल्फ़त में बे-धड़क 'हैरत' सिवा तुम्हारे किसी का जिगर नहीं
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