अगर आदमी वक़्त का राज़ पा ले तो मुमकिन है लम्हा भी सदियों को जा ले मैं अल्फ़ाज़ की कुंजियाँ ढालता हूँ खुलेंगे किसी रोज़ अबजद के ताले गुज़रता हुआ वक़्त रुक सा गया है परिंदे हैं दो चोंच में चोंच डाले ज़मीं की कमर तो है पहले से कूज़ा वही बोझ रखियो जिसे ये उठा ले ये हिजरत भी जैसे अबस की गई हो यहाँ भी वही लोग हैं देखे भाले यक़ीं छुप गए हैं गुमानों के पीछे गुमाँ कह रहे हैं हमें आज़मा ले हमेशा नहीं रहता दिल कार-आमद अभी वक़्त है तो ये सिक्का चला ले सफ़र की बशारत मिली दिल पुकारा ये घर मेरा गुलशन ख़ुदा के हवाले