अगर आह-ए-रसा से काम हम ना-काम लेते हैं फ़रिश्ते पाया-ए-अर्श-ए-मोअल्ला थाम लेते हैं बुतों पर कोई मर जाए क़ज़ा का नाम लेते हैं ये काफ़िर अपने ऊपर कब कोई इल्ज़ाम लेते हैं बुतों के ज़िक्र पर 'कैफ़ी' कलेजा थाम लेते हैं कोई पूछे इसी मुँह से ख़ुदा का नाम लेते हैं असर मेरी वफ़ा का बा'द मेरे ये हुआ उन पर मिरा जब नाम आता है कलेजा थाम लेते हैं तिरे अरमान दिल में आ के जम जाते हैं कुछ ऐसे निकालो तो निकलने का नहीं फिर नाम लेते हैं पड़ा रहने दो अपने साया-ए-दीवार में दम भर तुम्हारे दिल-जले थक कर ज़रा आराम लेते हैं हवा है अब्र है गुलज़ार है मुतरिब है साक़ी है मज़ा सावन का लेते हैं तो मय-आशाम लेते हैं तुम्हारी बद-गुमानी ही तुम्हें बदनाम करती है तुम्हारे मरने वाले कब तुम्हारा नाम लेते हैं लुटेरे हैं हसीं माशूक़ उन को कौन कहता है ज़बरदस्ती ये गाहक जिन से दिल बे-दाम लेते हैं मता-ए-दिल के बदले बोसा-ए-लब क्यों न लें आशिक़ कि चोखा माल देते हैं करारे दाम लेते हैं तिरे नक़्श-ए-क़दम को छू के सर पर कौन आफ़त ले हज़ारों फ़ित्ना-ए-महशर यहाँ आराम लेते हैं हम अपने घर में बातें करते हैं तुम को ख़लिश क्यों है शिकायत दिल से करते हैं किसी का नाम लेते हैं ख़ुशी मंज़ूर है उन की ज़बाँ से कुछ नहीं कहते न पूछो दिल पे क्या क्या मोरिद-ए-आलाम लेते हैं