चाँद के देस में है जी का ज़ियाँ सौदागर मोल क्या दोगे ग़म-ए-दिल का वहाँ सौदागर अब वो अगले से यहाँ मिस्र के बाज़ार नहीं आ गए शहर-ए-तमन्ना में कहाँ सौदागर दिल का हर ज़ख़्म है आईना तिरी सूरत का तू ने देखी नहीं शीशों की दुकाँ सौदागर हर गली चुप है कि आसेब का साया जैसे शहर-ए-दिल से तिरी रुख़्सत का समाँ सौदागर सहल इतना तो नहीं रूप-नगर से जाना दूर तक जाएगा आहों का धुआँ सौदागर नक़्द-ए-जाँ आए हैं बाज़ार में ले कर जब से हो गई जिंस-ए-वफ़ा और गिराँ सौदागर दिल के वीरान दरीचों पे चराग़ाँ 'माहिर' कौन देता है सर-ए-शाम अज़ाँ सौदागर