अगर है माँगना माँगो वहाँ से ज़माने भर को मिलता है जहाँ से कोई पूछे तो इतना बाग़बाँ से कि रौनक़ उड़ गई क्यों गुल्सिताँ से तअल्लुक़ है अब उन का गुल्सिताँ से जो ना-वाक़िफ़ हैं फूलों की ज़बाँ से लुटेरे ताक में बैठे हुए हैं अलग हो कर न चलना कारवाँ से सुलझते हैं मसाइल कोशिशों से ये हल होते नहीं आह-ओ-फ़ुग़ाँ से 'सदा' इक ज़र्रा-ए-ख़ाकी है लेकिन परे है उस की मंज़िल आसमाँ से