अगर इन बाज़ूओं में दम नहीं है तो गुलशन भी क़फ़स से कम नहीं है मिरे साज़-ए-जुनूँ के छेड़ने को कली का इक तबस्सुम कम नहीं है मुझे दुनिया मिरे आलम में देखे हर-इक आलम मिरा आलम नहीं है न दे मुझ को फ़रेब-ए-इश्क़ दुनिया फ़रेब-ए-ज़िंदगी कुछ कम नहीं है ग़म-ए-तौहीन-ए-मय-ख़ाना है 'शारिब' मुझे तिश्ना-लबी का ग़म नहीं है