प्यास जो बुझ न सकी उस की निशानी होगी रेत पर लिक्खी हुई मेरी कहानी होगी वक़्त अल्फ़ाज़ का मफ़्हूम बदल देता है देखते देखते हर बात पुरानी होगी कर गई जो मिरी पलकों के सितारे रौशन वो बिखरते हुए सूरज की निशानी होगी फिर अंधेरे में न खो जाए कहीं उस की सदा दिल के आँगन में नई शम्अ जलानी होगी अपने ख़्वाबों की तरह शाख़ से टूटे हुए फूल चुन रही हूँ कोई तस्वीर सजानी होगी बे-ज़बाँ कर गया मुझ को तो सवालों का हुजूम ज़िंदगी आज तुझे बात बनानी होगी कर रही है जो मिरे अक्स को धुँदला 'सरवत' मैं ने दुनिया की कोई बात न मानी होगी