अगर मैं जानता है इश्क़ में धड़का जुदाई का तो जीते जी न लेता नाम हरगिज़ आश्नाई का जो आशिक़ साफ़ हैं दिल से उन्हीं को क़त्ल करते हैं बड़ा चर्चा है माशूक़ों में आशिक़-आज़माई का करूँ इक पल में बरहम कार-ख़ाने को मोहब्बत के अगर आलम में शोहरा दूँ तुम्हारी बेवफ़ाई का जफ़ा या मेहर जो चाहे सो कर ले अपने बंदों पर मुझे ख़तरा नहीं हरगिज़ बुराई या भलाई का न पहुँचा आह-ओ-नाला गोश तक उस के कभू अपना बयाँ हम क्या करें तालए की अपने ना-रसाई का ख़ुदाया किस के हम बंदे कहावें सख़्त मुश्किल है रखे है हर सनम इस दहर में दावा ख़ुदाई का ख़ुदा की बंदगी का 'सोज़' है दावा तो ख़िल्क़त को वले देखा जिसे बंदा है अपनी ख़ुद-नुमाई का