अगर सुनानी है हर क़दम पर नई कहानी तो हार मानी फ़रेब खाते हुए गुज़रनी है ज़िंदगानी तो हार मानी अगर मोहब्बत तिरा रवय्या है फिर पराया तो बाज़ आया अगर ज़माने तिरी रविश है वही पुरानी तो हार मानी हम अपना जीवन हम अपनी ख़ुशियाँ हम अपना सब कुछ लुटा चुके हैं अगर है फिर भी हमारी क़िस्मत में राइगानी तो हार मानी समझ रही है अगर मोहब्बत को सिलसिला इक हिमाक़तों का समझ रही है जो ख़ुद को तू इस क़दर सियानी तो हार मानी नहीं बताना जो किस तनासुब से झूट है सारी दास्ताँ में नहीं बताना जो दूध क्या और क्या है पानी तो हार मानी सुख़न की देवी जो मेहरबाँ हो नहीं रही 'इफ़्तिख़ार' 'हैदर' जो रुक रही है क़लम की क़िर्तास पर रवानी तो हार मानी