अगरचे आँख बहुत शोख़ियों की ज़द में रही मिरी निगाह हमेशा अदब की हद में रही समझ सका न कोई ज़िंदगी की अर्ज़िश को ये जिंस-ए-ख़ास तराज़ू-ए-नेक-ओ-बद में रही बहुत बुलंद हुआ तमकनत से ताज-ए-शही कुलाह-ए-फ़क़्र मगर नाज़िश-ए-नमद में रही हमेशा दर्द से आरी रहा ये ज़ाहिद-ए-ख़ुश्क ये नाश ज़िंदा सदा गोशा-ए-लहद में रही दिलों में बैठ गया बरहमन का हुस्न-ए-बयाँ हदीस-ए-शैख़ तिलिस्मात-ए-रद्द-ओ-कद में रही