अगरचे हाल ओ हवादिस की हुक्मरानी है हर एक शख़्स की अपनी भी इक कहानी है मैं आज कल के तसव्वुर से शाद-काम तो हूँ ये और बात कि दो पल की ज़िंदगानी है निशान राह के देखे तो ये ख़याल आया मिरा क़दम भी किसी के लिए निशानी है ख़िज़ाँ नहीं है ब-जुज़ इक तरद्दुद-ए-बेजा चमन खिलाओ अगर ज़ौक़-ए-बाग़बानी है कभी न हाल हुआ मेरा तेरे हस्ब-ए-मिज़ाज न समझा तू कि यही तेरी बद-गुमानी है न समझे अश्क-फ़िशानी को कोई मायूसी है दिल में आग अगर आँख में भी पानी है मिला तो उन का मिला साथ हम को ऐ 'आमिर' न दौड़ना है जिन्हें और न चोट खानी है