अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है निरा बुरा नहीं ये शग़्ल कुछ भला भी है इस अश्क ओ आह में सौदा बिगड़ न जाए कहीं ये दिल कुछ आब-रसीदा है कुछ जला भी है ये आरज़ू है कि उस बेवफ़ा से ये पूछूँ कि मेरे बे-मज़ा रखने में कुछ मज़ा भी है ये कौन ढब है सजन ख़ाक में मिलाने का कसू का दिल कभू पाँव तले मिला भी है 'यक़ीं' का शोर-ए-जुनूँ सुन के यार ने पूछा कोई क़बीला-ए-मजनूँ में क्या रहा भी है