अगरचे वुसअत-ए-इम्काँ नज़र में छोड़ गया सफ़र का शौक़ ग़ुबार-ए-सफ़र में छोड़ गया कुछ ऐसे गुज़रा है पागल हवा का इक झोंका अजीब ख़ौफ़ सा इक इक शजर में छोड़ गया बिछड़ते वक़्त जो उस ने कहा था चुपके से वो एक लफ़्ज़ मुझे रहगुज़र में छोड़ गया न आहटें न सदाएँ न दस्तकें न उमीद न जाने कौन था कुछ भी न घर में छोड़ गया उभरते डूबते गुज़री तमाम शब 'अंजुम' उदास चाँद मुझे किस भँवर में छोड़ गया