अहद हाज़िर में अयार-ए-सुब्ह तो बदला मगर ऐ अँधेरी रात तुझ को भी बदलना चाहिए बावजूद-ए-ग़म मुसलसल क़हक़हे ऐ ना-मुराद कारवान-ए-ज़िंदगी के साथ चलना चाहिए शान-ए-रिंदाना की है तौहीन अज़-ख़ुद-रफ़्तगी सहल है पीना मगर पी कर सँभलना चाहिए ज़िंदगी वो क्या जो है ना-वाक़िफ़-ए-आशोब-ए-इश्क़ सीना-ए-आदम में तूफ़ानों को पलना चाहिए इक़तिज़ा-ए-असर-ए-नौ है ज़िंदगी तो दरकिनार मौत को भी हुस्न के साँचे में ढलना चाहिए ऐ जुनूँ कुछ देर शग़्ल-ए-ख़ाक-बाज़ी ही सही दिल तो इस सहरा-ए-हस्ती में बहलना चाहिए