अहल-ए-दिल अहल-ए-नज़र शाम-ओ-सहर रोया किए दर्द के पुतले थे आख़िर उम्र भर रोया किए हाल-ए-अहल-ए-दर्द ने उन को रुलाया उम्र भर जिन को हैरत थी ये क्यूँकर रात भर रोया किए दिल की मजबूरी पे रोने से जो मैं रोका गया बेबसी से दिल के छाले फूट कर रोया किए पास-ए-नामूस-ए-मोहब्बत ने कुछ ऐसा कह दिया सर झुका कर हम तो वो मुँह फेर कर रोया किए जिन से हलचल थी जहान-ए-आशिक़ी में मेरे बा'द ऐसे नालों के लिए दर्द-ओ-असर रोया किए ज़ौक़-ए-गिर्या दिल को था जाने वही उस का सबब क्या बताएँ तुझ को हम क्यों उम्र भर रोया किए हम न कहते थे कि इतनी सख़्तियाँ अच्छी नहीं तुम न 'बेख़ुद' को मिटा कर उम्र भर रोया किए