अजल ने कर दिया ख़ामोश तो क्या है ज़बाँ हूँ मैं कि हस्ती का फ़साना हूँ अदम की दास्ताँ हूँ मैं ज़मीं वाले जो कहते हैं कि अब क्या पीस डालेगा तो मिलता है जवाब इस का कि दौर-ए-आसमाँ हूँ मैं मैं समझाता हूँ जब दिल को तो कहता है मतानत से ज़माने की ज़बाँ तो है हक़ीक़त की ज़बाँ हूँ मैं मिरी तस्वीर मेरा बुत मिरा मरक़द है तन मेरा कभी था तो इसी दुनिया में लेकिन अब कहाँ हूँ मैं तिरी ग़ैरत को ऐ नाज़-ए-सितमगर क्या हुआ आख़िर तिरे होते हुए मम्नून-ए-जौर-ए-आसमाँ हूँ में क़यामत कर गया बार-ए-अमानत का उठा लेना हरीफ़-ए-मा-सिवा हूँ मुब्तला-ए-इम्तिहाँ हूँ मैं न जब उट्ठा था दिल दुनिया से ज़र्रा ज़र्रा दिलकश था मगर अब आशियाँ हर जा है पर बे आशियाँ हूँ मैं नज़र आता है हर मिम्बर पे मुझ को इक नया वाइ'ज़ जहाँ रिंदों का मजमा हो वहाँ पीर-ए-मुग़ाँ हूँ मैं मिरी क़िस्मत में ऐ 'बेख़ुद' कहाँ मंज़िल की आसाइश ग़ुबार-ए-राह हूँ बाँग-ए-दरा-ए-कारवाँ हूँ मैं