अहल-ए-हक़ भी आ गए अब उन की महफ़िल के क़रीब मस्लहत-कोशी उन्हें ले आई बातिल के क़रीब सर से ऊँचा हो जहाँ पानी वहीं है डूबना अब कोई मंजधार में डूबे कि साहिल के क़रीब सख़्त मुश्किल से भी हम पहुँचे न आसानी के पास कितनी आसानी से पहुँचे लोग मुश्किल के क़रीब इस घड़ी साबित-क़दम रहना बड़ा दुश्वार है डगमगाते हैं क़दम जब आ के मंज़िल के क़रीब सामने मक़्तूल के जो कर रहे थे एहतिजाज हो गए गूँगे सभी जब आए क़ातिल के क़रीब उन की यादों से न हम ग़ाफ़िल रहे 'साबिर' कभी वो नज़र से दूर रह कर भी रहे दिल के क़रीब