अहल-ए-जुनूँ सा काम किसी ने नहीं किया सहराओं में क़याम किसी ने नहीं किया ग़ालिब थे दुश्मनों पे मगर अहल-ए-ज़र्फ़ थे इक़दाम-ए-इंतिक़ाम किसी ने नहीं किया महफ़िल में कोई साहिब-ए-हुस्न-ए-नज़र न था पर्दे का एहतिमाम किसी ने नहीं किया सब लोग मुक़तदी हैं दिमाग़ों के आज-कल इस क़ल्ब को इमाम किसी ने नहीं किया दुनिया की लज़्ज़तों में गिरफ़्तार हो गए उक़्बा का इंतिज़ाम किसी ने नहीं किया