दिल मिरा माइल-ए-आरज़ू हो गया जब मिरे यार के रू-ब-रू हो गया दामन-ए-दिल मिरा चाक था यक-ब-यक उन की नज़र-ए-करम से रफ़ू हो गया वो जिसे मैं ने देखा नहीं था कभी आज वो ही मिरी जुस्तुजू हो गया ख़ूब दिल से सुनीं उस ने बातें मिरी आज मैं लाएक़-ए-गुफ़्तुगू हो गया जब तसव्वुर में तस्वीर-ए-यार आ गई इक उजाला मिरे चार सू हो गया बे-तकल्लुफ़ हुए मुझ से जब वो तो मैं आप से तुम हुआ तुम से तू हो गया ज़िक्र-ए-'अंजुम' हुआ जब तिरी बज़्म में तब से वो साहिब-ए-आबरू हो गया