अहल-ए-जुनूँ थे फ़स्ल-ए-बहाराँ के सर गए हम लोग ख़्वाहिशों की हरारत से मर गए हिज्र ओ विसाल एक ही लम्हे की बात थी वो पल गुज़र गया तो ज़माने गुज़र गए ऐ तीरगी-ए-शहर-ए-तमन्ना बता भी दे वो चाँद क्या हुए वो सितारे किधर गए वहशत के इस नगर में वो क़ौस-ए-क़ुज़ह से लोग जाने कहाँ से आए थे जाने किधर गए ख़ुशबू असीर कर के उड़ाए फिरी हमें फिर यूँ हुआ कि हम भी फ़ज़ा में बिखर गए