अश्कों को आरज़ू-ए-रिहाई है रोइए आँखों की अब इसी में भलाई है रोइए रोना इलाज-ए-ज़ुल्मत-ए-दुनिया नहीं तो क्या कम-अज़-कम एहतिजाज-ए-ख़ुदाई है रोइए तस्लीम कर लिया है जो ख़ुद को चराग़-ए-हक़ दुनिया क़दम क़दम पे सबाई है रोइए ख़ुश हैं तो फिर मुसाफ़िर-ए-दुनिया नहीं हैं आप इस दश्त में बस आबला-पाई है रोइए हम हैं असीर-ए-ज़ब्त इजाज़त नहीं हमें रो पा रहे हैं आप बधाई है रोइए