अहबाब मिरे दर्द से कुछ बे-ख़बर न थे ये और बात है वो कोई चारागर न थे ताक़त थी जब बदन में तो दरवाज़ा बंद था जब दर खुला क़फ़स का मिरे बाल-ओ-पर न थे अंजान हम थे राह से मंज़िल भी दूर थी अच्छा हुआ कि आप शरीक-ए-सफ़र न थे इस वास्ते भी मुझ को तिरा ग़म अज़ीज़ है जितने भी ग़म मिले वो ग़म मो'तबर न थे तारीक रात का था सफ़र राह पुर-ख़तर रौशन कहीं चराग़ सर-ए-रहगुज़र न थे वो दिन भी क्या थे दिल में तमन्ना न थी कोई तकमील-ए-आरज़ू के लिए दर-ब-दर न थे सैलाब-ओ-ज़लज़ले में हुए कितने घर तबाह वो लोग बे-नियाज़ रहे जिन के घर न थे कुछ लोग मिल गए थे यूँही राह में मुझे जो मेरे साथ साथ थे वो हम-सफ़र न थे सब ने मिरा कलाम पढ़ा लेकिन ऐ 'सईद' जो मेरे नाक़िदीन थे वो दीदा-वर न थे