अह्ल-ए-दुनिया को अगर मुझ से शिकायत है तो है हक़-परस्ती इस ज़माने में बग़ावत है तो है मत बुरा कहना उसे ऐ हसरत-ए-दीदार-ए-यार देर से आना पुरानी उस की आदत है तो है गाँव में भाई से भाई भी कहाँ महफ़ूज़ था क्या हुआ परदेस में हर सम्त दहशत है तो है माँ के आँचल से हसीं हरगिज़ नहीं ऐ आसमाँ तू ज़माने की नज़र में ख़ूबसूरत है तो है कर रहा है बाहमी मिल्लत की बातें फिर 'ज़की' अब ज़माने की नज़र में ये हिमाक़त है तो है