अहल-ए-हक़ की बातों से जो नज़र चुराएगा वक़्त एक दिन उस को आइना दिखाएगा जिस्म का हर इक हिस्सा ख़ुशबुएँ बिखेरेगा लम्स मेरी साँसों का जब असर दिखाएगा फ़स्ल-ए-गुल की आमद है चाक होंगे फिर दामन फिर जुनूँ की वादी का रास्ता बुलाएगा ख़ून-ए-आरज़ू अपना नज़्र-ए-गुल्सिताँ कर दो तब गुलों के चेहरे पर कुछ निखार आएगा इक़्तिदार-ओ-मंसब की जंग रोज़ जारी है कौन क़द्र-ए-इंसाँ की फ़स्ल अब उगाएगा हरकत-ओ-अमल में हैं कामरानियाँ मुज़्मर मंज़िलें उसी की हैं जो क़दम बढ़ाएगा तुम भी डूब जाओगे ख़ुश-गवार यादों में जब कभी ग़ज़ल मेरी कोई गुनगुनाएगा है 'नदीम' कुछ ऐसी दास्तान-ए-दिल अपनी सुन के हुस्न रोएगा इश्क़ मुस्कुराएगा