न उस ने हाल ही पूछा न कोई बात हुई कहूँ मैं कैसे कि हाँ उन से मुलाक़ात हुई लबों से मेरे जो निकली तो इक सदा ही रही दिलों में सब के जो उतरी वो बात बात हुई जो तेरी दीद से रौशन हुई सहर है वही जो तेरे पहलू में गुज़री वो रात रात हुई ये खेल देखे मोहब्बत के खेल में हम ने न जीत जीत रही और न मात मात हुई हिसार-ए-ज़ात में था 'इम्तियाज़' क़ैद मगर जो अपने ख़ोल से निकला तो ज़ात ज़ात हुई