फ़िक्र के शो'लों में चलती ज़िंदगी तब निखरती है हमारी ज़िंदगी हम ने देखा हादसों की भीड़ में मौत के मुँह से निकलती ज़िंदगी जब ये करती है तुम्हारा इंतिज़ार तब नहीं काटे से कटती ज़िंदगी गोद से है गोर तक बेचैनियाँ अलमिया है बेटियों की ज़िंदगी सींचा जाए गर मशक़्क़त से उसे फूल की सूरत महकती ज़िंदगी फूल पत्थर आग और शबनम 'निसार' रूप है कितने बदलती ज़िंदगी