एहसास देख पाए वो मंज़र तलाश कर आँखें जो हैं तो बू-ए-गुल-ए-तर तलाश कर मेरा वजूद जज़्ब हुआ तेरे जिस्म में अब मुझ को अपने जिस्म के अंदर तलाश कर तन्हाइयों के गहरे समुंदर में डूब जा ज़ख़्मों के फूल दर्द के गौहर तलाश कर तेरा बदन तो टूट गया वस्ल ही की शब अब आइने में ख़ुद को न दिन भर तलाश कर हर दिल से माँगता है जो ताज़ा लहू की भीक बस्ती में कोई ऐसा गदागर तलाश कर मैं थक गया हूँ ख़ाक बयाबाँ की छान कर मौज-ए-नसीम तू ही मिरा घर तलाश कर दश्त-ए-वफ़ा में यूँ न भटक दर-ब-दर 'नवेद' सर बन गया है बोझ तो पत्थर तलाश कर