ऐ दिल तुझे क्या वक़्त की पहचान नहीं है अब उन से मुलाक़ात का इम्कान नहीं है तेवर न हों इंसाँ के तो कुछ जान नहीं है क्या ख़त है वो जिस का कोई उन्वान नहीं है क्यों जोश-ए-मोहब्बत का वो तूफ़ान नहीं है क्या दिल नहीं सीने में है क्या जान नहीं है ग़म शर्त है दौराँ का हो या हो ग़म-ए-जानाँ जिस को न कोई ग़म हो वो इंसान नहीं है आए हैं मिरे जज़्ब-ए-मोहब्बत के असर से कुछ उन की इनायात का एहसान नहीं है दुश्मन का समझ लेना तो दुश्वार नहीं 'ज़ब्त' पर दोस्त की पहचान तो आसान नहीं है