अब कहाँ जाएँ ग़म भुलाने को छोड़ कर तेरे आस्ताने को ख़ौफ़-ए-दुनिया न फ़िक्र उक़्बा की चल दिया मैं शराब-ख़ाने को इस फ़रेब-ए-अदा के हम सदक़े दिल लिया भी तो आज़माने को चश्म अगर हो तो महव-ए-ज़ौक़-ए-नज़र दिल अगर हो तो ग़म उठाने को हम तो बर्बाद हो गए फिर भी लुत्फ़ आया न कुछ ज़माने को वादा-ए-वस्ल कर के वो रूठे 'ज़ब्त' जाते हैं अब मनाने को