ऐ ग़म तुझी से क्यों न ख़ुशी मुस्तआ'र लूँ दो दिन की ज़िंदगी है तो हँस कर गुज़ार लूँ मुमकिन नहीं कि मिल सके ये जिंस-ए-बे-बहा मैं वर्ना दिल को बेच के दिल का क़रार लूँ ऐ ज़ुल्फ़-ए-नाज़ तेरा तक़ाज़ा बजा मगर पहले ग़म-ए-हयात के गेसू सँवार लूँ काँटों को अपने ख़ून-ए-जिगर से निखार कर क्यों तुझ से इंतिक़ाम न फ़स्ल-ए-बहार लूँ