ऐ हुस्न-ए-अज़ल तेरी क्या शान निराली है देखा तो जलाली है समझा तो जलाली है है ज़र्फ़ ये जो आली मंसब भी वो आली है भर देगा मिरा साक़ी पैमाना जो ख़ाली है दुनिया-ए-मोहब्बत में क्या कोई दुआ ली है तुम ने किसी आशिक़ की हसरत भी निकाली है रहता है ये जिस धुन में दुनिया से निराली है दीवाना मोहब्बत का इक मर्द-ए-ख़याली है सूरत सी बदल दी है कुछ नक़्श-ए-मोहब्बत ने तस्वीर तिरी हम ने अब दिल में जमा ली है हूँ ज़ब्त-ए-मोहब्बत का ख़ूगर तो मगर अक्सर मचली है तबीअ'त तो मुश्किल से सँभाली है रस्म-ओ-रह-ए-हस्ती का पाबंद नहीं आशिक़ कहते हैं जुनूँ जिस को आज़ाद-ख़याली है तहज़ीब से फ़ारिग़ है अब मर्द-ए-ख़राबाती ता'मीर करेगा फिर बुनियाद तो डाली है इक वहशत-ए-हस्ती है धंदा मुझे दुनिया का कुछ धूल उड़ानी है कुछ धूल उड़ा ली है पाई है नज़र हम ने साक़ी की इनायत की उक़्बा भी बना लेंगे दुनिया तो बना ली है है गिर्द तमाशा सा इक ग़ोल-ए-बायाबाँ का सहरा में भी हम ने तो बस्ती सी बसा ली है अंदाज़-ए-बयाँ तू ने सीखा ये नया 'शाकिर' अब तर्ज़-ए-निगारिश में आज़ाद-ख़्याली है