चारा-ए-कार हुआ हद से सिवा हो जाना अब मिरे दर्द को आया है दवा हो जाना हम समझते हैं यही कुन-फ़यकूँ का हासिल इक ख़मोशी से तबस्सुम की अदा हो जाना ज़िंदगी का यही रिश्ता है मुसीबत का सबब साँस उखड़ना गिरह-ए-दिल का है वा हो जाना ऐ दुआ मुझ से शिकायत है जफ़ा-कारों को तुझ से ये किस ने कहा था कि गिला हो जाना ऐ अजल शम-ए-सिफ़त सोज़-ए-मोहब्बत के तुफ़ैल आ गया है हमें आप अपनी क़ज़ा हो जाना भूल जाना न मिरी आह को हाँ याद रहे उन के कूचे में अगर तेरा सबा हो जाना ये बताने की नहीं बात जताने की नहीं ख़ुद-ब-ख़ुद चाहिए इज़हार-ए-वफ़ा हो जाना सीखिए लुत्फ़ कि कमयाब इसे कहते हैं किस को आता नहीं दुनिया में ख़फ़ा हो जाना जब्र पर सब्र को आसाँ न समझ बंदा-ए-अक़्ल काम हिम्मत का है राज़ी-ब-रज़ा हो जाना मेरी आहों से जो तूफ़ान-ए-शरर उठा था बिजलियाँ सीख गईं उस से बला हो जाना इक मुसीबत है मुसीबत की तमन्ना 'शाकिर' इक बला हो गया हिम्मत का बला हो जाना