ऐ नामा-बर उल्फ़त का असर है कि नहीं है जो हाल इधर है वो उधर है कि नहीं है आसार तो अच्छे नहीं ऐ शाम-ए-जुदाई क्या जानिए क़िस्मत में सहर है कि नहीं है अब ज़िक्र ही क्या दर्द का ऐ चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ ये भी नहीं मालूम जिगर है कि नहीं है वो क्या है कहाँ है ये पता पूछने वाले पहले ये बता अपनी ख़बर है कि नहीं है दीदार मुबारक मगर ऐ शौक़-ए-नज़ारा गुज़री थी जो कल पेश-ए-नज़र है कि नहीं है क्या कम हैं जफ़ाओं से लगावट की अदाएँ ये ज़ुल्म ब-अंदाज़-ए-दिगर है कि नहीं है 'नव्वाब' ग़म-ए-इश्क़ समाएगा कहाँ अब कुछ शीशा-ए-दिल की भी ख़बर है कि नहीं है