अक्स-ए-नैरंगी-ए-जहाँ हैं हम एक बे-रब्त दास्ताँ हैं हम कर दिया गुम तिरी निगाहों ने तेरी महफ़िल में अब कहाँ हैं हम हुस्न-ए-ज़न फिर किसी से क्या रक्खें अपने साया से बद-गुमाँ हैं हम रात-दिन नित नए हैं अंदेशे और उन सब के दरमियाँ हैं हम कुछ जो होते तो फिर ख़ुदा होते कुछ न हो कर भी इक जहाँ हैं हम ये न समझे फ़रेब-ए-हस्ती में फिर अदम की तरफ़ रवाँ हैं हम आ भी जाओ कि पूरी हो जाए ना-मुकम्मल सी दास्ताँ हैं हम आतिश-ए-शौक़ सर्द है 'नव्वाब' थे कभी शो'ला अब धुआँ हैं हम