ऐ शख़्स देख वक़्त है अब भी पुकार ले फिर यूँ न हो कि हम को उदासी पुकार ले ख़ुद से फ़रार पाने के उस मरहले पे हैं लब्बैक कह उठेंगे कोई भी पुकार ले दरिया को हों पसँद तो पानी हमें बुलाए सहरा के मन को भाएँ तो मिट्टी पुकार ले ख़ुशियों में किस को आती है भूले हुओं की याद शायद अब उस की आँख का पानी पुकार ले दिन तो गुज़ार आए हैं सूरज-मुखी के साथ अब चाहते हैं रात की रानी पुकार ले क्या जानिए नसीब सँवर जाए किस घड़ी क्या जाने कब वो हुस्न की देवी पुकार ले तय कर के जा चुके हैं सभी रात का सफ़र उम्मीद है कि सुब्ह मुझे भी पुकार ले ख़ुद से फ़रार पाएँ तो चैन आए 'इम्तियाज़' मंज़िल नहीं तो राहगुज़र ही पुकार ले