आइना रूठ गया है तिरे जाने के बाद इक अंधेरा सा बिछा है तिरे जाने के बाद किस क़दर टूट के बरसे हैं ये बादल ग़म के आसमाँ चीख़ उठा है तिरे जाने के बाद दिल के टुकड़े हुए बरसात हुई अश्कों की क्या कहूँ क्या क्या हुआ है तिरे जाने के बाद ज़ेहन भी चुप है ज़बाँ चुप है नज़र भी चुप है हम ने भी कुछ न कहा है तिरे जाने के बाद चीख़ता खंडर है रोती है हवेली दिल की घर ये आसेब-ज़दा है तिरे जाने के बाद घर में दीपक ही जला है न कोई शम-ए-वफ़ा मुद्दतों दिल ही जला है तिरे जाने के बाद ऐसी ठोकर कभी खाई न थी इस से पहले मुझ को सदमा सा लगा है तिरे जाने के बाद ये ज़माना ही नहीं ख़ुद से भी 'अर्पित' मुझ को कुछ तअ'ल्लुक़ न रहा है तिरे जाने के बाद