ऐसा भी कोई करे है ख़लल मुल्क-ए-दीं में बुत हरगिज़ मैं उस की शक्ल का देखा न चीं में बुत मज़हब में मेरे शैख़ के इतना ही फ़र्क़ है मैं हाथ में रखूँ हूँ तो वो आस्तीं में बुत दीं हो गया ब-कुफ़्र बदल याँ तलक कि ख़ल्क़ रखे है जा-ए-क़िब्ला-नुमा अब नगीं में बुत सज्दा करे ख़ुदा को तो कीजो समझ के शैख़ अब भी गड़े हुए हैं हज़ारों ज़मीं में बुत जाऊँ तवाफ़ करने को क्यों कर मैं 'मुसहफ़ी' का'बे के ताक़ में है मिरे है नगीं में बुत