घूरते रस्तों का आसेब बना हूँ मैं तो मुझ से मिल पाओगे क्या शाम-ए-बला हूँ मैं तो देवताओं से न होगा मिरा दरमान-ए-ज़वाल आसमानों के सिंघासन से गिरा हूँ मैं तो जाते मौसम की तरह उस से कभी मिल न सका एक लम्हे के तअल्लुक़ की सज़ा हूँ मैं तो लोग गलियों में ही ढूँडा किए आँधी के सुराग़ अपनी आँखों के हिसारों में बुझा हूँ मैं तो ज़हर बन कर वो 'मुसव्विर' मिरी नस नस में रहा मैं ने समझा था उसे भूल चुका हूँ मैं तो